निदेशक महोदय का संदेश
भाकृअनुप-केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक, ओडिशा द्वारा विकसित नई वेबसाइट में आपका स्वागत है।
चावल न केवल संसार की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है बल्कि विश्व के लगभग आधी मानव जाति का मुख्य भोजन है। उत्तर कोरिया के 44 डिग्री उत्तर अक्षांश से लेकर ऑस्ट्रेलिया में 35 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक की जलवायु परिस्थितियों में लगभग 160 मिलियन हेक्टेयर में चावल की खेती की जाती है। भारत में केरल के समुद्र तल से 6 फीट नीचे से लेकर हिमालय में समुद्र तल से 2700 फीट ऊपर तक इसकी खेती की जाती है। यह फसल कई एशियाई देशों की आजीविका, संस्कृति और विरासत में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
भारत के लोग पिछले 7000 वर्षों से चावल की खेती कर रहे हैं। यह भारत की दो तिहाई से अधिक जनसंख्या का मुख्य भोजन है। वर्ष 1950 से पहले चावल की खेती मानसून पर निर्भर थी एवं अधिकतर पारंपरिक तकनीकों सहित की जाती थी। सूखे और बाढ़ जैसे प्रमुख अजैविक तनाव अक्सर कम या अधिक वर्षा के कारण होते थे। इन अजैविक तनावों के कारण बड़े पैमाने पर फसलें बर्बाद होती थी, भुखमरी और यहाँ तक कि अकाल भी होते थे जिनमें ओडिशा में सन् 1866 में महान अकाल (नअंक दुर्भिक्ष) भी शामिल है, जिसमें लगभग 10 लाख लोगों की मौत हुई तथा सन् 1943 में बंगाल में भंयकर अकाल हुआ जिसमें लगभग 20 लाख लोगों की मौत हुई। इन अकाल की पृष्ठभूमि में, भारत सरकार ने चावल पर समग्र अनुसंधान संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया तथा ओडिशा सरकार द्वारा प्रदान की गई 60 हेक्टेयर की कृषि फार्म में 23 अप्रैल, 1946 को कटक के विद्याधरपुर में केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान की स्थापना हुई। प्रसिद्ध चावल प्रजनक डॉ. के. रमैया इसके संस्थापक निदेशक थे। इसके बाद, 1966 में, संस्थान का प्रशासनिक नियंत्रण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को सौंप दिया गया। वर्तमान में संस्थान में अनुसंधान के लिए 117 हेक्टेयर भूमि और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं।
कटक में स्थित भाकृअनुप-केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, जो कि आईएसओ 9001: 2015 प्रमाणित संस्थान है, के अधीन दो अनुसंधान केंद्र एक हजारीबाग, झारखंड में वर्षाश्रित उपरीभूमि पारिस्थितिकी पर चावल अनुसंधान के लिए तथा दूसरा गेरुआ, असम में बाढ़ प्रवण वर्षाश्रित निचलीभूमि पारिस्थितिकी पर चावल अनुसंधान के लिए कार्यरत हैं। तटीय चावल क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए तीसरा अनुसंधान केंद्र नायरा, आंध्र प्रदेश में स्थापित किया जा रहा है। ओडिशा के कटक के संथपुर तथा झारखंड के कोडरमा के जयनगर में स्थित दो कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) भी सीआरआरआई के साथ मिलकर काम करते हैं।
संस्थान ने अब तक 133 उच्च उपज वाली चावल की किस्में तथा कई फसल उत्पादन एवं सुरक्षा तकनीकें एवं कृषि उपकरण विकसित किए हैं। इस प्रमुख संस्थान द्वारा विमोचित की गई किस्मों की खेती देश के 18-20% चावल क्षेत्र में की जा रही है। संस्थान देश की 26% बीज मांग को पूरा करने के लिए 120 टन उच्च गुणवत्ता वाले चावल के बीज का उत्पादन करता है। इन किस्मों से देश के चावल उत्पादन को 1950 में 20 मिलियन टन से बढ़कर वर्तमान में 112 मिलियन टन करने में महत्वपूर्ण योगदान मिला है। देश अब सालाना लगभग 10 मिलियन टन चावल का निर्यात कर रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा की अच्छी मात्रा अर्जित हो रही है।
सभी अनाजों में चावल सबसे महत्वपूर्ण मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक है, लेकिन इसमें आम तौर पर प्रोटीन की मात्रा कम होती है (6-7%) जिससे गंभीर पोषण संबंधी समस्या होती है। संस्थान ने संसार में पहली बार दो उच्च प्रोटीन वाली चावल की किस्में सीआर धान 310 और सीआर धान 311 विकसित की हैं, जिनमें कुटाई के बाद चावल में औसत प्रोटीन मात्रा 10% से अधिक है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए, इसने दो जलवायु-स्मार्ट किस्में सीआर धान 801 और सीआर धान 802 विकसित की हैं, जो पहली बार सूखे और बाढ़ तथा जैविक तनाव प्रतिरोधी है।
संस्थान ने राष्ट्रीय जीन बैंक में दीर्घकालिक भंडारण के रूप में 35,600 से अधिक प्रविष्टियां जमा की हैं और सीआरआरआई-जीन बैंक में मध्यम अवधि के भंडारण के रूप में 20,000 से अधिक प्रविष्टियां संरक्षित किए हैं। इसने नाइट्रोजन और फास्फोरस के उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए सूक्ष्मजीवी सूत्रण विकसित किए हैं; फसल प्रबंधन के अनुकूलन के लिए सिमुलेशन मॉडल को कैलिब्रेट और मान्य किया है; चावल के अवशेषों के पर्यावरण के अनुकूल और आर्थिक उपयोग के विकल्पों की पहचान की है; छोटे और सीमांत किसानों के लिए 30 से अधिक उपकरणों का निर्माण किया है; एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल को अनुकूलित और प्रदर्शित किया है और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के लिए प्रौद्योगिकियां और रणनीति विकसित की हैं। चावल के कीटों के खिलाफ प्रतिरोध के नए स्रोतों का पता लगाने के लिए 1,25,000 से अधिक जीनप्ररूपों की जांच की गई है। इसने जीवाणुज पत्ता अंगमारी और भूरा पौध माहू के खिलाफ प्रतिरोधी जीनप्ररूप की पहचान की है। संस्थान ने एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीक विकसित की है और संग्रहीत अनाज कीटों के खिलाफ कीटनाशकों और फॉस्फीन फ्यूमिगेंट के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में पौधों के आवश्यक तेलों की पहचान की है। इसने वाणिज्यिक चावल-मछली एकीकृत कृषि प्रणाली के लिए विभिन्न मॉडलों को विकसित और बढ़ावा दिया है।
किसानों तक नवीनतम धान विज्ञान की जानकारी पहुँचाने के लिए संस्थान ने 4S4R (स्व-निर्भर सतत बीज प्रणाली), फार्मर फर्स्ट, मेरा गाँव मेरा गौरव और अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं। पिछले पाँच वर्षों में, संस्थान ने 144 गाँवों में 27,000 से अधिक किसान परिवारों को लाभान्वित किया है, 5 किसान उत्पादक कंपनियाँ स्थापित की हैं, 50 से अधिक कंपनियों के साथ समझौते किए हैं, 60,000 से अधिक हितधारकों को कृषि परामर्श सेवा दी है और riceXpert ऐप विकसित किया है, जो अंग्रेज़ी, हिंदी और ओड़िया में उपलब्ध है, साथ ही इसमें वॉयस रिकॉर्डिंग और उत्तर प्रणाली भी है।
संस्थान में चावल पर नवीनतम अनुसंधान करने के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशाला और उपकरण सुविधाएं हैं। इसमें धान पौधों के जड़ की लंबाई, क्षेत्र और आयतन, टोपोलॉजी, बनावट और बहुत उच्च रिजोल्यूशन के तहत रंग विश्लेषण का अध्ययन करने के लिए रूट स्कैनलाइजर, मिट्टी और पौधों में नत्रजन और कार्बन निर्धारित करने के लिए नाइट्रोजन ऑटो-एनालाइजर, पौधों के स्वास्थ्य को मापने के लिए क्लोरोफिल फ्लोरोसेंस इमेजिंग सिस्टम, अमीनो एसिड प्रोफाइल और फ्लेवोनोइड्स का विश्लेषण करने के लिए अल्ट्रा हाई परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी, ग्रीनहाउस गैसों को मापने के लिए गैस क्रोमैटोग्राफ, मिट्टी, पौधे और पानी में धातुओं और मेटालॉयड का आकलन करने के लिए परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर और इंडक्टिव कपल्ड प्लाज्मा-ऑप्टिकल एमिशन स्पेक्ट्रोमीटर पीसीआर/थर्मल साइक्लर डीएनए या वांछित जीन के किसी विशिष्ट क्षेत्र को कॉपी करने में सक्षम प्रतिदीप्ति माइक्रोस्कोप और स्टीरियो जूम माइक्रोस्कोप शामिल है।
संस्थान ने हाल ही में एक उन्नत जीनोमिक्स और गुणवत्ता प्रयोगशाला की स्थापना की है; सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के लिए नई इमारतों का निर्माण किया है, संथापुर में कृषि विज्ञान केंद्र के लिए प्रशासनिक भवन और एक सभागार का निर्माण किया है।
संस्थान नियमित रूप से समाचार पत्र, तकनीकी बुलेटिन, नीति पत्र, विजन दस्तावेज और पुस्तकें प्रकाशित करता है।
यह संस्थान साझेदारी मोड पर कई आईसीएआर संस्थानों, विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और विदेशों में स्थित संस्थानों के साथ सहयोग करता है। यह प्रयोगशाला सुविधाओं, क्षेत्र अनुसंधान के अवसरों को उन्नत करने एवं किसानों की आय बढ़ाने और अपनाने के लिए नई, मान्य तकनीकें प्रदान करने हेतु किसानों के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए लगातार प्रयासरत है।
संस्थान चावल विज्ञान के विभिन्न विषयों में अनुसंधान और प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करता है। सीआरआरआई में एचआरडी के कार्यक्रम में एमएससी/एमटेक/समकक्ष डिग्री, पीएचडी डिग्री और प्रशिक्षण शामिल हैं। इसके अलावा, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी छात्रों के लिए सीआरआरआई में शानदार अवसर है क्योंकि आईआरआरआई एक सहयोगी परियोजना मोड में सीआरआरआई को 25 छात्रवृत्तियां प्रदान कर रहा है। हजारीबाग में क्षेत्रीय उपकेंद्र पीएचडी छात्रों और एमएससी छात्रों के ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण का मार्गदर्शन करने जैसी क्षेत्रीय जरूरतों को भी पूरा करता है। पिछले 5 वर्षों के दौरान संस्थान ने चावल आधारित प्रौद्योगिकियों और कृषि-उद्यमिता पर 5000 लोगों को प्रशिक्षित किया है और 120 एमएससी और 30 पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन किया है। इसके अतिरिक्त, सीआरआरआई ने नाइजीरिया, तंजानिया और नाइजर जैसे विकासशील देशों से चावल शोधकर्ताओं को पोस्ट डॉक्टरेट या विजिटिंग फेलो के रूप में शोधकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान किया है।
कृषि अनुसंधान एवं विस्तार के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए संस्थान को सरदार पटेल उत्कृष्ट आईसीएआर संस्थान पुरस्कार (2008) और आईसीएआर-सर्वोत्तम वार्षिक रिपोर्ट पुरस्कार (2016-17) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
वर्तमान में चावल की खेती में कई तरह की चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, जैसे कम उत्पादकता और कम आय; आंशिक कारक उत्पादकता में गिरावट; प्राकृतिक संसाधन आधार का ह्रास; जलवायु परिवर्तन के खतरे; बढ़ती श्रम और ऊर्जा की कमी और धान पराली का पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन। सीआरआरआई किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ-साथ नवीन चावल अनुसंधान के संबंध में तीव्र गति से प्रगति कर रहा है। संस्थान उच्च उत्पादकता, लाभप्रदता, जलवायु अनुकूल और चावल की खेती की स्थिरता के लिए सुपर-उपज (10 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक) किस्मों, सी4 चावल और कृषि-प्रौद्योगिकियों को विकसित करने पर काम कर रहा है।
इंटरनेट तकनीक के युग में सूचना साझा करना और पारदर्शिता एक परम आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस संस्थान ने एक नई वेबसाइट विकसित की है, जो किसानों, छात्रों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सहयोगियों के लिए एक सूचनात्मक खिड़की है।
मैं इस नई वेबसाइट को विकसित करने में उनकी भागीदारी और मदद के लिए प्रभागों के अध्यक्ष, वेबसाइट समिति के सदस्यों, एरिस सेल के प्रभारी अधिकारी, योगदानकर्ताओं और अन्य कर्मचारियों को इसके निर्माण में उनके योगदान हेतु धन्यवाद देता हूँ।
मुझे आशा है कि यह वेबसाइट अपने उद्देश्य को पूर्ण करेगी और सभी उपयोगकर्ताओं को नई और समृद्ध जानकारी पढ़ने में आनंद आएगा। कृपया अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा करें, जिससे हम इसे लगातार और बेहतर बना सकें।
हार्दिक शुभकामनाएँ।
निदेशक
भाकृअनुप-सीआरआरआई, कटक